आखिर क्यों होती हैं इस्लाम के नाम पर हत्याएं?
गूगल पर एक साधारण सर्च करने से ही पता चल जाएगा कि जहां भी बहुतायत में हैं, मुस्लिम ही मुस्लिम को मार रहे हैं, इस्लाम के नाम पर. ये वजह कई सवाल खड़े करती है और जवाब मांगती है.
1. अगर ये शांति का धर्म है तो फिर कत्लेआम क्यों?
2. अगर हर धर्म अच्छा है लेकिन उसके मानने वाले धर्म को बदनाम कर रहे हैं तो फिर हिंदू दूसरे हिंदुओं को क्यों नहीं मार रहे, मुसलमानों की तरह?
3. हिंदुओं को कश्मीर घाटी से क्यों भागना पड़ा? सिर्फ इसलिए कि वे अल्पसंख्यक थे?
4. सबसे खतरनाक मजहबी दंगों गुजरात 2002, मुंबई 1993 और भागलपुर 1989 के दौरान भी मुसलमानों को कहीं पलायन करने की जरूरत क्यों नहीं पड़ी?
5. इसका जवाब पाकिस्तान बनाने के आइडिया में छुपा है. मुसलमानों को पता है कि भारत से गए मुसलमान वहां कैसे रहते हैं. यह बेवजह नहीं है कि यहां इमाम बुखारी मुसलमानों के लिए एक और अलग देश बनाने की धमकी देते हैं.
6. तो नियम साफ हैं-
i) संख्या कम है तो लोकतंत्र का हिस्सा बने रहो, उसे झेल जाओ.
ii) अगर ठीक-ठाक संख्या में अल्पसंख्यक हों तो खुद को आतंक पीड़ित दिखाओ.
iii) जब बहुसंख्यक हो तो बाकी लोगों को दो ही विकल्प दो - धर्मांतरण या देश निकाला. या फिर नरसंहार जैसा कि कश्मीर में हुआ.
7. औसत मुस्लिम के मन को सैयद शहाबुद्दीन की ओर से शुरू की गई मैगजीन 'मुस्लिम इंडिया' से समझा जा सकता है. हालांकि, अपवाद हर जगह हैं.
(साभार डॉ. चंद्रकांत प्रसाद सिंह )
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