राम मंदिर पर क्यों आसान नहीं है समझौता?
रामजन्म भूमि और बाबरी मस्जिद विवाद को आपसी सहमति से अदालत के बाहर सुलझाने की सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के पीछे कई वजहें हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये धर्म और आस्था से जुड़ा मामला है और संवेदनशील मसलों का हल आपसी बातचीत से हो. लेकिन ये इतना आसान नहीं है.
हिन्दू-मुसलमानों के तर्क
पहली बात है कि ये किसी का व्यक्तिगत मुकदमा नहीं है. इसमें मुसलमानों की तरफ से शिया और सुन्नी सब शामिल हैं और हिन्दुओं की तरफ से भी सब संप्रदाय शामिल हैं. तो इसमें कोई एक व्यक्ति या एक संस्था समझौता नहीं कर सकती.
दूसरी बात ये कि हिन्दुओं की तरफ़ से तर्क ये है कि रामजन्म भूमि को देवत्व प्राप्त है, वहां राम मंदिर हो न हो मूर्ती हो न हो वो जगह ही पूज्य है.
हालांकि कुछ लोग ये तर्क देते हैं कि कुछ मुस्लिम देशों में निर्माण कार्य के लिए मस्जिदें हटाई गईं हैं और दूसर जगह ले जाई गई हैं.
वहीं हिन्दुस्तान के मुसलमानों का कहना है कि मस्जिद जहां एक बार बन गई तो वो क़यामत तक रहेगी, वो अल्लाह की संपत्ति है, वो किसी को दे नहीं सकते . इसलिए मुस्लिम समुदाय की तरफ से ये कहा जा रहा है कि अगर इस मामले में सुप्रीम कोर्ट फ़ैसला कर दे तो हमें कोई ऐतराज़ नहीं हैं.
पहले भी हो चुकी हैं समझौते की कोशिशें
इस मामले में समझौते की कई मुश्किलें हैं क्योंकि पहले भी इसकी कोशिशें हुई हैं, दो बार प्रधानमंत्री स्तर पर प्रयास हुए.
इसके अलावा विश्व हिन्दू परिषद और अली मियां जो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के रहनुमा थे उनके बीच में कोशिश हुई हैं. लेकिन इस मसले में बीच का रास्ते नहीं निकल पाया तो समझौता नहीं हुआ.
अदालत क्यों नहीं कर रही फ़ैसला
अब सवाल ये है कि अदालत इस मसले का फैसला क्यों नहीं कर पा रही है?
दरअसल अदालत के लिए फैसले में सबसे बड़ी दिक्कत है मामले की सुनवाई करना. सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या कम है. ये संभव नहीं है हाई कोर्ट की तरह तीन जजों की एक बेंच सुप्रीम कोर्ट में भी मामले की सुनवाई करे.
हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान कई टन सबूत और काग़ज़ात पेश हुए. कोई हिन्दी में है, कोई उर्दू में है कोई फ़ारसी में है. इन काग़जों को सुप्रीम कोर्ट में पेश करने के लिए ज़रूरी है कि इनका अंग्रेज़ी में अनुवाद किया जाए. अभी तक सारे काग़ज़ात ही सुप्रीम कोर्ट में पेश नहीं हो पाए हैं और सबका अनुवाद का काम पूरा नहीं हुआ है.
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में दूसरी समस्या ये भी है कि मुकदमें के पक्षकार बहुत हैं. ऐसे में सुनवाई में कई हफ़्तों का समय लगेगा.
अगर रोज़ाना सुनवाई करें तो कई बार जज रिटायर हो जाते हैं और नए जज आ जाते हैं. तो सुनवाई पूरी नहीं हो पाएगी. इसीलिए चीफ जस्टिस ने कोर्ट ने बाहर समझौता करने की सलाह दी है. ये भी हो सकता है कि चीफ जस्टिस के दिमाग़ में ये बात रही हो कि अगर कोर्ट कोई फ़ैसला कर भी दे तो समाज शायद उसे आसानी से स्वीकार ना करे.
राम जन्मभूमि का मामला पहले एक स्थानीय विवाद था और स्थानीय अदालत में मुक़दमा चल रहा था. लेकिन जब विश्व हिन्दू परिषद इसमें कूदी तो उसके बाद बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन हुआ और ये विश्व हिन्दू परिषद , भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एक हिन्दू राष्ट्र के सपने का हिस्सा हो गया.
ऐसे में मुस्लमानों को ये भी लगता है कि ये एक मस्जिद का मसला नहीं है, अगर हम सरेंडर कर दें तो कहीं ऐसा ना हो कि इसके आड़ में उनके धर्म और संस्कृति को ख़तरा हो जाए.
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
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